मनुष्य और अन्य सजीव सृष्टि कर निर्माण कैसे हुआ, इस विषय में अनेक धर्मों एवं पंथों में विविध मत प्रचलित है। प्रत्येक का तत्त्वज्ञान समान नहीं है तब भी प्रत्येक शास्त्र अपने तत्त्वज्ञान पर, मत पर, विचारों पर दृढ़ है। धार्मिक भावना से और श्रद्धा से संबंधित विषय होने के कारण अधिक स्पष्ट रूप से अच्छा अथवा बुरा कोई बोलने को तैयार नहीं । इससे मूल प्रश्न सैकड़ों वर्षों से अंधेरे को गर्त में रहा है ।
विज्ञानवादी लोग अपनी ओर से प्रश्न का हल ढूंढ़ने के लिए प्रयत्नशील है । धार्मिक लोग चिकित्सा के बजाय श्रद्धा के बल पर अड़े हुए हैं। ऐसे अनुत्तरित प्रश्न पर तत्त्वचिंतक अश्विनजी ने प्रकाश डाला है। ब्रह्माण्ड, कुदरत किस प्रकार सारे विश्व कर सृजन करते है है इस रहस्य का उद्घाटन करने का प्रयत्न किया गया है ।
एक मानव के नाते पृथ्वी पर मैं आया उसके बाद मेरा विभागीयकरण विविध धर्म और जाति में किस प्रकार हुआ, इसकी विवेचना पुस्तक में की गई है ।
मुत्यु के बाद मेरा अस्तित्व क्या? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर चिकित्सा प्रद्भति से करने का प्रयत्न किया गया है ।
संक्षेप में हैं 21वीं शताब्दी कर 'नेचर्स ह्यूमन फिलॉसफी' इस तत्त्वज्ञान को आत्मसात करने योग्य है ।