प्रेमचंद-पूर्ववर्ती हिंदी उपन्यास-साहित्य में दो प्रमुख धाराएं प्रवाहित होती दिखाई देती है, जिनमें से प्रथम धारा है, जिसका प्रतिनिधित्व लाला श्रीनिवास दास के ‘परीक्षा-गुरु' में मिलता है और दूसरी धारा जिसे तिलस्मी-ऐयारी एवं जासूसी उपन्यास की संज्ञा प्राप्त है।
‘चंद्रकांता संतति' द्वेष, घृणा एवं ईर्ष्या पर प्रेम के विजय की महागाथा है जिसने उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में धूम मचा दी थी। देवकी नंदन खत्री के उपन्यास को पढ़ने के लिए लाखों लोगों ने हिन्दी सीखी थी। करोड़, लोगों ने इन्हें चाव के साथ पड़ा था और आज तक पढ़ते आ रहे हैं। हिन्दी की घटना प्रधान तिलस्म और ऐयारी उपन्यास- परंपरा के ये एकमात्र प्रवर्तक और प्रतिनिधि उपन्यास है। कल्पना की ऐसी अद्भुत उड़ान और कथा-रस की मार्मिकता, इन्हें हिन्दी साहित्य की विशिष्ट रचनाएं सिद्ध करती है।