भारतवर्ष में गुरु और शिष्य की परम्परा बहुत प्राचीन है । गुरु का स्थान परमेश्वर से भी ऊंचा माना गया है । गुरु के द्वारा ही व्यक्ति को सांसारिक ज्ञान प्राप्त होता है और गुरु के द्वारा ही उसे इस ज्ञान का बोध होता है कि किस प्रकार परमेश्वर को प्राप्त किया जा सकता है । संत और भक्ति साहित्य हमारे देश की अमूल्य धरोहर है । यह साहित्य एक ओर हमारे भविष्य और हमारे जीवन का आधार है तो दूसरी ओर भौतिक जगत् के द्वन्द्वों, संघर्षों, द्वेषों और संतापों के बीच एकता, मित्रता, सहजता और सहिष्णुता का संदेश-प्रदाता भी है । साधना में रत और भक्ति-रस में निमग्न संत एवं भक्त कवि केवल मोक्ष, ब्रह्म, माया, आत्मा और परमात्मा के स्वरूप का ही गायन नहीं करते रहे, उन्होंने जीवन और जगत् के विविध बिंदुओं का स्पर्श किया मानव को नई संकल्प शक्ति, कर्त्तव्यनिष्ठा एवं सद्मार्ग के अनुगमन का उपदेश भी दिया ।