प्रेमचद साहित्य में 'कर्मभूमि' उपन्यास का अपनी क्रांतिकारी चेतना के कारण विशेष महत्त्व है । यह उस दौर की कहानी है जब देश गुलाम था । लोग अंग्रेजों के जुल्म के शिकार हो रहे थे । हर कही जनता उठ रही थी । उसको रोकना अथवा संयमित करना असंभव था यह असाधारण जनजागरण का युग था । नगरों और गांवों में, पर्वतों और घाटियों में, सभी जगह जनता जाग्रत और सक्रिय थी । कठोर से कठोर दमन-चक्र भी उसे दबा नहीं सका । यह विप्लवकारी भारत की गाथा है । गोर्की के उपन्यास ' मां ' के समान ही यह उपन्यास भी क्रांति की कला पर लगभग एक प्रबन्ध ग्रंथ है ।
कथा पर गांधीवाद का प्रभाव बहुत स्पष्ट है । अहिंसा पर बार-बार बल दिया गया है । साथ ही इस उपन्यास में एक क्रांतिकारी भावना भी है, जो किसी भी प्रकार समझौतापरस्ती के खिलाफ है । समालोचक इस उपन्यास को मुश प्रेमचंद की सबसे क्रांतिकारी रचना मानते है ।