इस पुस्तक के लेखक स्वामी ज्ञानभेद (श्रीकांत मित्तल) ने बड़े परिश्रमपूर्वक ओशो के शब्द-रत्नाकर में गोते लगाकर उन सारे रत्नों को एकत्रित किया है जो उन्होंने अपने बचपन के संबंध र्मे कहे हैं । ऐसे हजारों किस्सों को चुनकर उन्हें क्रमश: एक कालबद्ध सूत्र में गूंथना बड़ी लगन और मेहनत का काम है । ओशो जब बचपन की कहानियां सुनाते हें तो किसी विशेष संदर्भ में । उन सब बिखरे हुए मोतियों को इकट्ठे कर, उन्हें समय के क्रम में पिरोने का दुरुह कृत्य स्वामी ज्ञानभेद ने बखूबी किया है, इसलिए पुस्तक पड़ते दुए लगता है कि हम एक रोचक उपन्यास पढ़ रहे हें... ।
यह उपन्यास बनाम आत्मकथा एक तीर्थ-यात्रा है । पावन गंगा के सभी रूप समस्त विन्यास ओशो की उन्मुक्त जीवन सरिता में पाए जाते हैं । वे बज्रादपि कठोर और कुसुमादपि मृदु दोनों हैं । उनके जीवन की बहुआयामी घटनाएं देखकर लगता है कि जैसे हमारे चक्षुओं के सामने ब्रह्माण्ड का अनंत विस्तार खुल गया हो