डॉ० विजय अग्रवाल द्वारा लिखी गई इस पुस्तक ‘प्रशासनिक चिन्तक’ की दो अपनी विशेषताएँ हैं - पहली यह कि यह मूल हिन्दी में ही लिखी गई है। इसमें आपको अनुवाद के कारण पैदा हुई कठिनाई से गुजरना नहीं पड़ेगा। दूसरी यह कि यह पुस्तक सिद्धान्त, समझदारी और अनुभव को मिलाकर लिखी गई है। इसके कारण आप इस पुस्तक में एक अलग ही तरह की सहजता, सरलता और रोचकता पायेंगे। यह प्रशासनिक चिन्तकों के बारे में आपके दिमाग में समझ की एक ऐसी पुख्ता नींव तैयार कर देगी कि इनको लेकर होने वाले उलझाव और अस्पष्टता से आपको हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति मिल जायेगी। साथ ही यह आपके अन्दर एक ऐसी अन्तर्दृष्टि भी पैदा करेगी कि आप अपने स्तर पर कुछ नया सोच सकें। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप स्वयं को इस स्थिति में पायेंगे कि आपके विश्लेषण करने की क्षमता में कई गुना वृद्धि हो गई है। आप स्वयं को सामाजिक-विज्ञानी दृष्टि से सम्पन्न एक बौद्धिक युवा के रूप में पायेंगे। और ऐसा हो जाना कम बड़ी बात नहीं होगी।