आरम्भ से ही घर में गांव और पढ़ाई-लिखाई दोनों का मिश्रित वातावरण था। मुझे बचपन की एक घटना याद आती है जब मैं चौथी श्रेणी में पढ़ती थी। मेरा बड़ा भाई अपनी कक्षा में प्रथम आया और उसको सभी का बहुत प्यार-दुलार मिला। हर वक्त सब उसी के गुण गाते रहते थे। यह देखकर मुझे भी लगा कि यदि मैं भी अच्छे नम्बर लाऊँ तो मुझे भी सबका प्यार मिलेगा। बस फिर क्या था मैं भी पूरी मेहनत से पढ़ाई में लग गई। और तब से लेकर जब तक पढ़ाई की, प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण हुई। बस नौंवी कक्षा में द्वितीय श्रेणी आई क्योंकि उसी साल हम श्रीनगर (कश्मीर) गये थे और वहाँ हिन्दी को छोड़कर बाकी सभी विषय अंग्रेजी में ही पढ़ने पड़ते थे। उस हिसाब से ढलने में मुझे थोड़ा समय लगा। फिर तो हमेशा मैरिट लिस्ट में नाम आया और राष्ट्रीय-स्तर की छात्रवृत्ति मिलती रही।