इस उपवन में, मेरे मनः प्रांगण में क्रीड़ा करती मेरी राग-कन्याओं की विविध भंगिमाएँ अंकित, रूपायित, शब्दायित हैं। एक ही सर्जक से भिन्न मनःस्थितियों में जन्य होकर बहुवर्णी आयामों से पुष्ट हैं। वे शैशवक्रीड़ा भी करती हैं, भावपुष्ट नर्तन का प्रयास भी। वे राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय जगत की तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में, सांप्रदायिकता, उग्रवाद व सम्प्रदायवाद से हो रहे विषमतम संक्रमण के प्रति गहरी वेदना एवं विक्षोभ की अभिव्यक्ति के साथ उसके समाधान का प्रयास प्रयत्न भी करती हैं। अध्यात्म की दीप्त रश्मियों में सत्य का उज्ज्वलतम रूप देखने के प्रति मेरी गहरी इच्छा इन कविताओं में स्वतः ही स्पष्ट है। इन सम्पूर्ण आयामों में मेरी संचेतना पाश्चात्य से प्राच्य, अधः से ऊर्ध्व संचरण करती रही है।
मैं यह स्वीकार करता हूँ कि ये सभी मेरी संचेतना के विविध आयाम हैं, जिनमें मेरी जीवनस्थितियों, मनःस्थितियों के प्रतिरूप हैं। अनेक धर्म-दर्शनों की पठन-पाठन यात्रा, अनेक सत्संगों के अमूल्य क्षण, पारिवारिक तथा प्रशासनिक जटिल दायित्वों को स्वीकारना तथा सृष्टि को लीलालोक जानकर, लीलाभाव से समस्त कार्यसंभार को करने का प्रयास-समर्पण का भाव - सभी साथ-साथ। इन्हीं समस्त अन्तर्बाह्य स्थितियों, मनःस्थितियों, बौद्धिक उन्मेष तथा अन्तःसाक्ष्य के दीप्त क्षण-सभी के बिम्ब इन काव्य पुत्रियों के भाव-कणों में बिम्बित हैं।
समस्त कविताओं के पूर्व अपने भावक्षणों को शब्दों में बिम्बित करने की धृष्टता अवश्य की है। कवि के साथ अध्येता का हृदयसंवाद हो, सत्य के प्रति आग्रह की वेदना हो, तड़प हो, स्पष्ट रूप से सीधी बात करने का साहस हो, इसी का यह लघु प्रयास है। इस काल में सत्य को खोजती कविता की मानवता को सर्वाधिक अपेक्षा है। अन्यथा भविष्य का इतिहास हमें कभी क्षमा नहीं करेगा।