Samriti ke pankho par
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लेखन के क्षेत्र में मैं सिद्धहस्त नहीं हूँ। बस भाव-अभिव्यक्ति का साधन है – 'लेखन' । अपने अंतर्मन के उद्गार, अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाती इसलिए ये भाषा के प्रवाह में बहने लगती हूँ। सृष्टि के नियमों से बँधा यह जीवन, अपने उदयावस्था से लेकर अस्तावस्था तक, अनेक उतार-चढ़ाव देखता है। चाहे हम किसी भी वर्ग के हों, अपने परिवेश और सोच की सीमा में रहकर; उतार-चढ़ाव
वाले जीवन-पथ पर चलना ही होता है। सृष्टि सुंदर है, संसृति उसकी सुंदरता का विस्तार है। यही कारण है कि संसार में रहकर, हम जीवन के हर रसों को अपने में आत्मसात् करते हैं या कहें, करना ही पड़ता है। यह अलग बात है कि किसी-किसी के जीवन में, कुछ ही रसों का संचार हो पाता है। जीवन कथा का आरंभ, इसी समाज में होता है और समापन भी यहीं होता है। बीच में, यात्रा-वृतांत की अनुभूति यदि हम कर पाते हैं, तो यही 'स्मृति' बन जाती है। कालान्तर, हम स्मृति के पंखों पर सवार होकर देखते हैं - 'समय बदल गया, किंतु आज भीपरिस्थितियाँ नहीं बदली। ये परिस्थितियाँ अडिग भी नहीं हैं। यदि हम अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाएँ, तो पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन होगा।
प्रस्तुत रचना में संकलित कहानियाँ, मानवीय भावनाओं और समस्याओं का मूल्यांकन है, जो समय का आह्वान कर न्याय चाहती है।
अंत में, मेरे भाव-प्रवाह में यदि भाषाई अशुद्धियाँ रुकावट हैं, तो भाषाविद् के सम्मुख क्षमाप्रार्थी हूँ।