मैं सदैव ऋणी रहूंगी मेरे आदरणीय माता पिता के लिए जिन्हें किताबों से बेहद लगाव था। उन्होंने कहानियों को कथित तौर पर जीवित रखा, उनके आसपास की कहानियों व किरदारों को दम नहीं तोड़ने दिया और मुझसे अक्सर कहा कि हम सब कहानियां ही हैं जिसकी कहानी का जब सही मायनों में कथन हो जाता है वह अगले पड़ाव पर चल देता है। विशेष तौर पर प्रोफेसर राणा नायर, (फार्मर डायरेक्टर अंग्रेजी ऐंड कल्चरल स्टडीज़ विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय) जो कि अहम प्रेरणा स्रोत हैं, उनकी बदोलत यह कहानियां आज सफों तक पहुंच पाई हैं और उनसे ही कहानियों को दृष्टिकोण मिला, उनकी ऋणी रहूंगी। एडवोकेट विराट अमरनाथ गर्ग (my husband) के बिना शर्त समर्थन के लिए उनकी शुक्रगुज़ार रहूंगी। अनुराधा प्रकाशन और उनकी सहायक टीम, जिन्होंने कहानियों को तराश कर किताब का रूप दिया है सबका तहे दिल से आभार व्यक्त करती हूँ। अंत में उन सभी को नमन जिनकी वजह से यह कहानियां खुदमुख्तारी करने में सफल हुई हैं।