पुरुषसूक्त, सभी वेद-संहिताओं में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण एवं जनप्रसिद्ध सूक्त है । पुरुषसूक्त में ऐसे आदिपुरुष या ब्रह्म की अवधारणा है , जिसके मात्र एक पाद अर्थात् चतुर्थांश से समस्त लोकों, ब्रह्मांडों का अस्तित्व है। भूत , भविष्य एवं वर्तमान में जो कुछ था , होगा या है , वह सभी पुरुष का ही स्वरूप है । पुरुषसूक्त एक, ऐसा उदात्त एवं महान संदेश प्रस्तुत करता है , जिसमें किसी भी रचनात्मक कार्य हेतु समर्पण एवं बलिदान की भावना सर्वोपरि बताई गई है ।पुरुष सूक्त, सार्वभौमिक एकता का उत्कृष्ठ उदाहरण है।
धार्मिकअनुष्ठानों , यज्ञ ,दैनिकपूजा व स्वाध्याय आदि सभी अवसरों पर इसके मंत्रों का प्रयोग किसी न किसी रूप में अवश्य किया जाता है। पुरुष सूक्त के मंत्रों की बहुआयामी उपयोगिता के संबंध में एक अलग अध्याय में इसका विवेचन किया गया है। प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न वेद संहिताओं में वर्णित पुरुषसूक्त के मंत्रों को उद्धृत करने के बाद ,ऋग्वेद में दिए गए पुरुषसूक्त के 16 मंत्रों की व्याख्या के साथ साथ प्रत्येक मंत्र का अंग्रेजी लिप्यंतरण ,पद पाठ , अन्वय , शब्दार्थ एवं भावार्थ भी दिया गया है ।
पुरुषसूक्त में आए एक मंत्र , जिसमें शूद्रों की उत्पत्ति विराट् पुरुष के पैरों से मानी गई है “पद्भ्यां शूद्रो अजायत” के सम्बन्ध में प्रायः समाज के एक वर्ग में इसे शूद्रों के