parijat man
parijat man

parijat man

This is an e-magazine. Download App & Read offline on any device.

Preview

पारिजात के पुष्पों से मैं बहुत प्रभावित हूँ। जीवन कितना भी हो, पर हो पारिजात के फूलों सा, महकता रहे- महकाता रहे, रात भर मुस्कुराता रहे, सुबह धरा पर गिरकर उसे सजाता रहे। कोई नाम नहीं, कोई पहचान नहीं, सिर्फ इतना ही कहूँगी कि :
"जीवन से कुछ पल चुरा कर अपने मन के गीत बुने हैं इन सांसों को महकाने को पारिजात के फूल चुने हैं"
आशा है कि इनकी सुगंध कुछ क्षणों के लिए आप तक भी ज़रूर पहुंचेगी। यही मेरी वास्तविकता है। मेरे पिता साहित्य के प्रति काफी रुचि रखते थे और लिखते भी थे, ऐसा माँ ने बताया। पाँच वर्ष की आयु म ही हमारे सर से उनका साया उठ गया। पर आज इसी बात का गर्व है कि जो कुछ भी हैं, माँ की बदौलत हैं। उनका संघर्ष अतुलनीय है। मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे माँ ने कभी किसी भी चीज़ की कमी नहीं होने दी। संसार म जन्म देना विधाता का अनुपम वरदान है क्योंकि उसी के बाद माँ बनने का सर्वोत्तम पुरस्कार मिलता है। आज माँ बनने के पश्चात ये समझ आया :
"अपने सपनों के अरमानों से एक पौधा उगाया है तुम्हारे आँगन म खिलने को पारिजात लगाया है" इस संकलन म मैंने केवल अपने मन के भाव लिखे हैं जो जैसे भी आए, खुशी के हों या ग़म के, हँसी के हों या आँसू के। पिता का साया न होना, माँ का हमारे लिए संघर्ष करना, बचपन इसीलिए काफी एकाकी और विद्रोही रहा। पर उस विद्रोह की अभिव्यक्ति करने का मार्ग नहीं सूझ रहा था। 14 वर्ष की आयु म पहली कविता लिखी थी 'बेरोज़गार'। मित्रों द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर छुटपुट लिखना शुरू किया पर गंभीरता से नहीं लिया। दोस्तो! मन के भाव पारिजात के फूलों की तरह होते हैं जो सिर्फ कुछ पल के लिए खिलते हैं और फिर जल्द ही बिखर भी जाते हैं।