Nishkamp
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जीवन की आपाधापी में यदि 'दो क्षण' ऐसे निकाल सकें, जिनके स्वामी हम स्वयं हैं, तो वे क्षण हमारे लिए अमूल्य बन जाते हैं। सृजन के ऐसे ही क्षण सुखदाई व अनमोल होते हैं। सृजन की निष्कम्प लौ जब हमारे हृदय को आलोकित करने लगती है, तो वह क्षण हमारे लिए अनुपम होते हैं। ऐसे ही क्षणों की कुछ अभिव्यक्तियाँ आपके सम्मुख हैं। यदि पसंद आयें तो आभारी होऊँगी अन्यथा इन्हें अनदेखी कर दें।
इन कविताओं का एक गुण इनकी विविधता है। जीवन में नित्य-प्रति घटित होने वाली घटनाओं को अनुभूति व विचार की कसौटी पर रखने से होने वाली प्रतिक्रिया की ही इनमें अभिव्यक्ति मिलती है।
इस सृजन-यात्रा में मुझे सर्वाधिक सहयोग मेरे परिवार से मिला है। मेरी बेटी अंशुल की तो मैं विशेष रूप से आभारी हूँ। उसने न केवल समय-समय पर अमूल्य सुझाव दिये वरन् 'प्रूफ रीडिंग' भी उसी ने की जो मेरे लिए बहुत बड़ी सहायता थी। मेरा परिवार निरन्तर अमूल्य सहयोग देकर मेरी सहायता करता रहा है मेरी यह कृति मेरे परिवार को ही समर्पित है। मैं उनकी आभारी हूँ और उन पर मेरा अधिकार भी है।
इनके अतिरिक्त मेरी मित्र शकुन्तला शर्मा की, जो अपनी पैनी दृष्टि से देख कर दो-शब्द लिख कर सदैव मेरा मार्ग-दर्शन करती रहीं, मैं हृदय से आभारी हूँ। अधूरा रहेगा यह सब यदि मैं अपने भागनेय रक्षित भाटिया को धन्यवाद न दूँ जो अपने परिपक्व सुझावों से मुझे सदैव प्रोत्साहित करते रहे। मेरी समधिन श्रीमती साहनी को भी मेरा धन्यवाद ।
इस पुस्तक के प्रकाशक श्री मनमोहन शर्मा, अनुराधा प्रकाशन की आभारी हूँ जिन्होंने सुन्दर प्रकाशन तथा समय के प्रतिबन्ध का पूरा ध्यान रखा। धन्यवाद ।

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