सर्वप्रथम विद्या लॉयल जी को उनके कविता संग्रह ‘नारीनामा 2–1’ के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ तथा आपका यह प्रयास सफल हो, पाठकों की अच्छी प्रतिक्रिया मिले, इसके लिए शुभकामना प्रेषित करता हूँ । ‘नारीनामा 2–1’ इसका उपशीर्षक इसकी वास्तविकता को बता देता है µ ‘नारी – कल, आज और कल’, क्या थे कभी क्या आज हैं और क्या होंगे कभी । भारतीय नारी कहीं श्रधा , कहीं पूजनीय और कहीं विश्वास पर होता घात जो यह सब सोचने पर मजबूर कर देता है । विद्या लॉयल जी ने नारी की गाथा को कविता के मा/यम से बखूबी गढ़ा है और सभी पक्ष को छूने का सफल प्रयास किया है । एक तरफ ‘लड़की हूँ लड़ सकती हूँ’ कविता बताती है कि नारी हूं कमजोर नहीं, वहीं ‘ललकार’ कहती है कि अपने हक के लिए आवाज भी उठा सकती हूं । फिर नारी मन की बात करते हुए ‘कामवाली’ का भी चित्र्ण किया । ‘अकेली’ औरत के मन को भी टटोला और एक लड़की के हौसलों की उड़ान कितनी ऊँची हो सकती है इस पर मंथन किया है । कुशल गृहणी के कृतित्व को समझते हुए पत्नी के रूप को भी आपने काव्यबद्ध किया है । इसी प्रकार अन्य कविताओं के शीर्षक भी संकेत करते हैं ‘बर्दाश्त’, ‘चरित्र् प्रमाण पत्र्’, ‘कामकाजी महिला’, आँसू, रास्ते के रोड़े आदि कविताओं के माध्यम से नारी मन को अच्छे से समझा है और कविताओं के मा/यम से उजागर किया है कि नारी को अक्सर कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और एक ऐसी स्थिति आती है कि आखिर वह ‘बगावत’ करने का भी मन बना लेती है । मनमोहन शर्मा ‘शरण’ संपादक –‘उत्कर्ष मेल’ राष्ट्रीय पाक्षिक पत्र् संस्थापक – अनुराधा प्रकाशन