ललित पारिमू का यह नाटक "मैं मनुष्य हूँ " आत्म-स्मृति को रिफ्रेश करने का बटन दबाने जैसा एकदम अलग और अद्भुत नाट्यानुभव है।क्या कोई नाटक ऐसा भी हो सकता है जो मानवीय सभ्यता के वैश्विक संकट के दिनों में समस्यामूलक बन रहे हमारे जीवन के द्वंद्वों को सहलाते हुए हमें उसका सहज व सार्वकालिक निदान भी समझा जाए और हमें पता भी न चले।हमें समय,स्थान,परिवेश के बन्धनों या उसके तनावों से बाहर निकाल ले।मन को परिभाषित करना आसान नहीं,ललित पारिमू अपने चर्चित ' अभिनय योग ' के सूत्रों से इस नाटक में हमें चुपचाप मनुष्य के मनोजगत की पड़ताल कराते हैं और अपनी सनातन ज्ञान परंपरा से जोड़कर हमें आत्म-समीक्षा भी कराते हैं। हम अपने मनोभावों की ऊर्जा,अनके घात- प्रतिघातों व उनकी सकारात्मक सम्भावनाओं से आश्वस्त होते हैं। मनुष्य-जीवन को सार्थक बनाने हेतु नकारात्मकताओं को सकारात्मकता में परिवर्तित करने की अपनी भूमिका समझ आना सहज हो जाता है। 'मैं मनुष्य हूँ ' नाटक अभिनय ,निर्देशन और परिकल्पना की दृष्टि से ललित पारिमू की प्रभावशाली सृजनात्मक कृति के रूप में गिनी जाएगी।नाटक में उनका यह कथन कि यदि हम अभिनय का जीवन में प्रयोग करें तो निश्चित रूप से हम एक बेहतर मनुष्य बन सकते हैं । और यह कितना बड़ा निष्कर्षात्मक सूत्र है जो ललित पारिमू इस प्रयोगधर्मी नाटक में सहज ही संवेदित करा जाते हैं। -अग्निशेखर