KATRA BHAR DHOOP
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कविता ऐसी अविच्छिन्न जलधारा है, जो सदियों से ऊँचे पर्वतों को लाँघती, दुर्गम्य घाटियों में बहती, जंगलों में लोक जीवन से रस लेती, कभी सुख एवं दुःख के तटों को छूती, अनजाने रास्तों से चलकर रहस्य की पर्तों को खोलते हुए प्रवाहित होती है। बादलों से रसमयता, पुष्पों से सुगन्ध, वायु से स्फूर्ति, सूर्य से प्रखरता, चाँद से शीतलता, सागर की उत्ताल तरंगों से उमंग, धरती से उर्वरता, आकाश से विशालता, पक्षियों से उड़ान, वृक्षों से सदाशयता लेती हुई कविता मानव जीवन को विविध इंद्रधनुषी रंगों से सराबोर कर देती है। कविता की रसधारा को आप्लावित करने में शब्द अपनी महती भूमिका का निर्वहन करते हैं शब्द ही विचार या भाव को मूर्तिमत्ता प्रदान कर ग्राह्म बनाते हैं। कविता का अपना भावजगत् है। कविता मानवीय संवेदनाओं को एक मनभावक आकार देती है। वैसा ही आकार जैसे एक चितेरा कैनवास पर तूलिका से सृष्टि के अनगिनत रहस्यों को उकेरता है। कवि भी अपनी लेखनी से बाह्य तथा अन्तर्जगत् को शब्दों में नया अर्थ भरकर बिम्बों तथा प्रतीकों के सहारे अभिव्यक्ति देता है। कालानुसार कविता ने नव-नव रूप-रंग धारण किये हैं। मेरी दृष्टि में कविता ईमानदारी से भाववस्तु को प्रस्तुत करना है। बनावटीपन से दूर वास्तविक जीवन के प्रकटीकरण का नाम है।

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