युग के प्रभाव से साहित्यकार निरपेक्ष नहीं रह सकता। युग के प्रभाव की मात्रा साहित्यकार के व्यक्तित्व, प्रतिभा और रूचि के आधार पर कम या अधिक हो सकती है, जो साहित्यकार युग सापेक्ष रचना करेगा, वह जनजीवन के अधिक समीप रहेगा। युग सापेक्ष रचना का सीधा सम्बन्ध 'व्यंग्य चेतना' से है। आधुनिक साहित्य की मूल चेतना यह व्यंग्य चेतना ही है। यही कारण है कि आज की कहानी, कविता, निबंध, उपन्यास यहाँ तक कि ललित निबंध भी इसी व्यंग्य चेतना से प्रभावित और संचालित हो रहे हैं। कुशलेन्द्र श्रीवास्तव सजग, चेतन और चिन्तक रचनाकार हैं, ऐसा रचनाकार अपने समय के प्रति 'तटस्थ' नहीं रह सकता है। कुशलेन्द्र श्रीवास्तव ने वर्तमान युग में व्याप्त सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक विकृतियों का पर्दाफाश करने के लिये 'व्यंग्य' को अपना माध्यम बनाया है, चूँकि व्यंग्य लेखन, सृजनात्मक, सकारात्मक तथा दायित्वपूर्ण कर्म होता है। एक नितान्त शुभ कार्य के लिये वह 'अशुभ' का वेष धारण करता है। व्यंग्यकार यथास्थिति वादी नहीं होता, वह निराशावादी और कुंठित व्यक्ति भी नहीं होता, उसके दिमाग में एक स्वस्थ समाज की तस्वीर होती है, यहीं से व्यंग्य की सामाजिक भूमिका आरंभ होती है।