लघुकथा विधा की एक और कृति आपके शुभ हाथों में है, जिसकी रचियता हैं- राज बाला 'राज' । राज बाला 'राज' एक उभरती हुई लेखिका साहित्यकार हैं, जिनका इससे पूर्व एक कविता संग्रह 'दीया बिन बाती' भी प्रकाशित हो चुका है। अपने प्रथम प्रयाम में ही राज बाला 'राज' ने अच्छी लघुकथाएं लिखने का सफल प्रयास किया है। ग्रामीण आँचल में रहने वाले अपने पति श्री बलजीत सिंह, जो स्वयं एक अच्छे लेखक/साहित्यकार के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं और कई पुस्तकों के रचियता हैं। सानिध्य में रहते हुए वह अच्छा प्रयास कर रही हैं।
चूंकि उनकी पृष्ठभूमि ग्रामीण है, वह एक घरेलू और सामाजिक महिला हैं, अतः स्वाभावितक रूप से उनकी लघुकथाओं के कथानक, चरित्र और घटनाएँ भी अपने आसपास के वातावरण से ही चुने-चुने गए हैं। परन्तु इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि इससे इनका महत्व कम हो जाता है, बल्कि ऐसे लिखने वाले लेखक आज भी बहुत कम हैं जो अपने परिवार और समाज के आसपास की समस्याओं, आवश्यकताओं या घटनाओं पर लेखनी चलाते हैं, वर्ना तो सिर्फ नेताओं को कोसने, राजनीति की निदा करने, भ्रूण हत्या, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं के खोखले नारों और उपदेशों से कागज़ भरते जा रहे हैं, जिसका कोई मूल्य या महत्व नहीं है, सिवाय स्वयं को साहित्यकार समझ लेने के ।
राज बाला 'राज' की लघुकथाओं के कथानक, घटनाएँ या पात्र चूंकि साधारण और अपने आसपास के ही है, अतः वे चौंकात बिल्कुल नहीं हैं, अपितु एक हल्की सी थाप या चपत दे कर जगाते अवश्य ही हैं। उन उन बुराईयों के लिए टोकते हैं या हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं, जिनका साधारणतया हम साधारण-सी जान कर या मान कर अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेते हैं, परन्तु कभी-कभी वह एक साधारण-सी भूल भी जीवन भर का नासूर बन जाती है।