कवितायें आधुनिक ऋचाएं हैं, जिनमें जीवन के अनुभवों का शाब्दिकरण है। यदि अनुभव की भट्टी पर पकाकर शब्दों के पकवान बने हों तो निश्चय ही वे बड़े हितकारी और आत्मसात करने योग्य हो जाते हैं। यूँ तो हर हृदय जब वह प्रसन्न होता है या अत्यधिक दुखी होता है, कुछ अधिक स्पंदित होता है किन्तु उम्र के साथ वह भी नियंत्रण सीख जाता है। पीड़ा भरी होने पर जब उसका दबाव बढ़ जाता है तो स्वतः ही कविता या कथा का झरना मन से फूट पड़ता है। अक्सर देखा है कि अपने अकेलेपन को शब्द जो साहचर्य देते हैं वह असीम शांति देता है मन को।
बूँदें जो आँखों से टपकती हैं वह खारी होती हैं, मगर कभी-कभी हर्षातिरेक में टपकी ढलकी ये बूँदें जब शब्दों का रूप लेती हैं तो लगता है मानो हीरक कण ही शब्द रूप में कागज़ पर जगमगा रहे हों। बहिन बिमला रावर जी की इन प्रस्तुत कविताओं में जीवन की दशों-दिशाओं का और मनोभावों का सरल और ग्राह्य शब्दांकन आप तक पहुँच रहा है। उनकी कविताओं में मात्र शब्द संयोजन भर नहीं है वरन जीवन के सफर में साधे संजोये बीज मंत्र हैं। जिनको पढ़कर और आत्मसात कर पाठक सहजता से समय चक्र के दृष्टिपटल पर उन चित्रों को देख पाता है। उनके काव्य सफर की तरह ही जीवन का सफर भी रहा है जो उपलब्धियों भरा है। प्रस्तुत काव्य संग्रह "भटके मेरा मन बंजारा" जीवन के दौरान चुने हुए विचार और अनुभव के मोती ही हैं।
कवयित्री बिमला रावर एक माँ और एक अध्यापिका का जीवन जीते हुए कविताओं के छौने पालकर हम तक पहुंचाने में सफल रही हैं। यह उनका चौथा काव्य-संग्रह है। जिस प्रकार उन्होंने इस पुस्तक के शीर्षक "भटके मेरा बन बंजारा" को जीवित शब्द-सफर का साथी बनाया है वह सार्थक हुआ है, क्योंकि पाठक को लगेगा "अरे ! यह तो मेरे ही मन की बात है।" मन के कल्पित स्वप्न शब्द रूप में साकार हो उठे हैं।