पिछले 2-3 वर्षों से ‘लव ज़िहाद’ की बात मीडिया के मा/यम से हमारे सामने बार–बार आ रही है । अगर मीडिया की माने तो ‘लव–जिहाद’ एक ज्वलंत समस्या के रूप में हमारे समाज में पैठ बना रहा है । लाक–डाउन के दौर में जब मैं अपने प्रोफेशन से दूर, घर में ही किसी तरह समय व्यतीत कर रहा था । उन दिनों ही ख्याल आया कि क्यूं न लव–जिहाद विषय पर एक उपन्यास की तामीर किया जाय । जब दिमाग ने सोचना प्रारंभ किया तो मन में एक प्लाट बनने लगा । लेकिन प्लाट का बनना और उसे विस्तार देना दो जुदा बातें थीं । उपन्यास को सार्थक रूप में प्रस्तुत करने, मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ घटनाओं को पढ़कर निष्कर्ष निकालना प्रारंभ किया । 4–5 घटनाओं का विश्लेषण करने के बाद, मेरे दिमाग में यह क्लिक किया कि इस विषय को प्रेम–प्रसंग के माध्यम से कागज पर उतारा जाय । इस हेतु मैंने दो प्रेमी जोड़ियों को उपन्यास का केन्द्र बिन्दु बनाया । मेरा यह उपन्यास इन्हीं दोनों जोड़ियों के दायरे में ताने–बाने बुनता आगे बढ़ता है । मुझे ऐसा महसूस होता है कि उपन्यास के मूल–तत्व को, बिना पूर्वाग्रह के, तर्क संगत तरीके से आगे बढ़ते हुए, उपसंहार तक ले जाने में मैं सफल रहा । वास्तव में उपन्यास की हर पंक्ति, हर घटना मेरी कल्पना पर आधारित है । मुझे उम्मीद है कि इस उपन्यास के पाठकों को इसकी कहानी तर्क संगत लगेगी और ग्राह्य भी होगी । वैसे यह विषय लिखने हेतु बेहद संवेदनशील है,अत: बहुत कठिन है । इस उपन्यास की तामीर में मुझे जो सहयोग अपनी धर्मपत्नी डॉ. ममता दानी व अपने पुत्र अनुराग दानी से प्राप्त हुआ, इसके लिए मैं उनका शुक्रगुजार हूँ । अंत में अनुराधा प्रकाशन, नई दिल्ली को तहे दिल से धन्यवाद , जिसने मेरी लेखनी को किताब की शक्ल में मंज़रे–आम तक लाया । डॉ– संजय दानी दुर्ग