सच्चा कवि वही जो आवरण न ओढ़ आचरण के साथ कथनी व करनी में एकरूपता के साथ काव्य–संसार की सृष्टि करे । रचनाधर्मिता में समाज की समस्याओं को उजागर कर उसके समाधान का संदेश भी दे । समाज को दिशा देना उसकी साहित्य–साधना होनी चाहिए । यह सब मैं इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं बहुत बड़ा विद्वान हूँ, यह इसलिए उधृत कर रहा हूँ कि आज भी बहुत से युवा लेखक–कवि, साहित्यकार अपनी रचनाओं के साथ न्याय कर भी रहे हैं और कुछ नहीं भी कर रहे हैं । यह उनका दृष्टिकोण हो सकता है । यहाँ मैं उस चिरपरिचित ‘अस्सी वर्षीय युवा’ हास्य–व्यंग्य कवि श्री सत्यदेव हरियाणवी के संदर्भ में अपनी बात रख रहा हूँ । उनकी यह पुस्तक ‘खुशबू ही खुशबू लुटाते रहो’ उनकी मस्त, मनमौजी व हरियाणवी बोली की अल्हड़ छवि लिए आपके दिल में गहरे तक उतर जाएगी । श्री सत्यदेव हरियाणवी अपने नाम को प्रत्येक कवि–सम्मेलन में सार्थक तो करते ही रहे हैं, लेकिन हिन्दी व हरियाणवी बोली के मिलेजुले रूप को प्रस्तुत करने में वह सिद्धहस्त कवि हैं । देश व देश के बाहर, विशेष रूप से ब्रिटेन में उन्होंने हरियाणवी हास्य–काव्य व हिंदी की कविताओं से सभी श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया है व वाह–वाह के साथ खूब तालियाँ बटोरी हैं । उनकी कविताओं की विशेषता सरल हरियाणवी है न कि ठेठ खड़ी हरियाणवी बोली । ठेठ हरियाणवी भारत के विभिन्न भागों में कवि–सम्मेलनों में लोगों–श्रोताओं के सिर से उतरते देखा है मैंने, जबकि श्री सत्यदेव हरियाणवी को हीरो के रूप में श्रोताओं ने सिर–आँखों पर बैठाया । आज जब उनका दूसरा कविता–संग्रह ‘खुशबू ही खुशबू लुटाते रहो’ मेरे हाथों में अपना मत लिखने के लिए आया तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा । यह ऐसा कविता–संग्रह है जिसमें श्री सत्यदेव हरियाणवी ने हिन्दी मुक्तक, छंदमुक्त कविताएं व हरियाणवी हास्य–व्यंग्य की प्रभावी व शानदार कविताएँ दी हैं, जिनको पढ़कर पाठक वर्ग निश्चित ही एक ईमानदार व सत्यनिष्ठ कवि का दीवाना हो जाएगा । मैंने प्रारंभ में उन्हें युवा कवि कहा है । यह मैं फिर दोहरा रहा हूँ कि वह बच्चों के साथ बच्चे, युवाओं के साथ युवा होकर घुलमिल जाते हैं । वृद्ध या उम्र दराज होने का आभास किसी को भी उनमें नहीं दिखाई देता । ठीक इसी प्रकार उनकी कविताएँ समय–सापेक्ष व दीर्घकाल तक हमारे दिलों में छाई रहंेगी । हास्य सम्राट काका हाथरसी के साथ कवि सम्मेलनों में कविता पाठ करने से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के समक्ष कविता के रंग बिखेरने वाले, तत्कालीन हास्य के /मधुर कवियों के साथ–साथ श्री सत्यदेव हरियाणवी आज की युवा पीढ़ी के साथ तालमेल करते हुए आज भी जोश से लबालब हैं । रेडियो, दूरदर्शन व चैनलों के असंख्य श्रोता व दर्शक उनकी कविताओं के मुरीद हैं । यही कारण है अनेक पुरस्कार व अलंकरण पाने पर भी वह अति विनम्र व आत्म प्रशंसा से दूर हो साहित्य–साधना में लीन हैं । मैं उनके बारे में जितना भी लिखूँ, वह कम है । अंत में, केवल इतना ही कहूँगा ‘खुशबू ही खुशबू लुटाते रहो’ कविता संग्रह की कविताएँ पाठकों के हृदय को प्रफुल्लित कर देगी । उनकी सहजता व रचनाधर्मिता को प्रणाम । उनकी सुदीर्घ स्वस्थ आयु की ईश्वर से प्रार्थना के साथ मंगलकामनाएँ । महेन्द्र शर्मा (वरिष्ठ कवि व पत्रकार)