“परिचय” इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो राजाओं ने बड़ी बड़ी सेनाओं के बल पर अपने साम्राज्यों का विस्तार किया।विस्तारवाद की ये नीति हमारे देश में इतनी घातक सिद्ध हुई जिसमें अशोक महान जैसे राजा भी हज़ारों लाखों लोगों का ख़ून बहाने में पीछे नहीं रहे।उसके बाद क्या मुग़ल और क्या अँग्रेज़,सभी ने अपनी सीमाओं को बढाने के लिए रक्तरँजित तलवारों का सहारा लिया।सीमाओं को बढाने का मक़सद ज्यादा से ज्यादा ज़मीन,जनता और धन पर अपना वर्चस्व था।दिन महीने साल और शताब्दियाँ गुज़रीं,और आज़ादी के बाद हमारे देश में एक नयी व्यवस्था ने जन्म लिया।जो होड़ आजादी से पहले राजाओं और अँग्रेज़ों के बीच थी वही होड़ आज़ादी के उपरान्त लोकतँत्र के द्वारा चुनी हुई सरकारों में भी जल्द ही शुरू हो गयी।शहरों का निर्माण होना शुरू हो गया।गाँव अपनी बदहाली पर रो रहे थे,और शहरों की चकाचौंध ने गाँव के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा दिए।सुविधाओं के अभाव में गाँव की स्थिति बद से बदतर होती चली गई और एक बहुत बड़े स्तर पर लोगों का पलायन शुरू हो गया।धीरे धीरे शहरों में भीड़ बढ़ने लगी और शहर के हर कोने में एक बहुत बड़े वोट बैंक का निर्माण शुरू हो गया।चुनी हुई सरकारें प्रत्यक्ष रूप से जनता पर तो अधिकार सकती हैं,परन्तु धन और ज़मीन पर अधिकार जमाने के लिए इन्हीं सरकारों ने अप्रत्यक्ष रूप से ज़मीन माफियाओं को जन्म दिया,जिन्हें हम बिल्डर के नाम से जानते हैं।बस अन्तर इतना है कि राजाओं ने जो काम सेनाओं के बल पर किया वो काम आज की सरकारें ख़ाकी के बल पर करती हैं।ख़ाकी और खादी का ये मेल जिसमें शासन और प्रशासन का पूरा अम्ला इन ज़मीन माफियाओं को सँरक्षण देने में लग गया,और ये ज़मीन माफ़िया समाज में बिल्डर के रूप में रातों रात स्थापित हो गए। पूरा सरकारी महकमा आज नए नए बिल्डर को पैदा करने में लगा हुआ है।हर सरकार के अपने बिल्डर और हर बिल्डर की अपनी सरकार बस यही खेल है और यही खेल चल रहा है।इस खेल को हम बड़ी बेबसी से लाखों के फ़्लैट ख़रीद कर देख रहे हैं कि कब हमारी सरकार जागेगी,कब हम लोगों को हमारा अधिकार मिलेगा।कब इन ज़मीन माफियाओं से इस समाज को छुटकारा मिलेगा।कब ख़ाकी और खादी इन बिल्डरों के सँरक्षण देना बँद करेगी,और सबसे ऊपर,कब हमें हमारे सपनों का घर मिलेगा।