ठियोग रियासत में जन-आन्दोलनों का इतिहास बहुत पुराना रहा है। यहां की जनता शुरू से ही तानाशाही शासन एवं अत्याचारी शासन केखिलाफ आन्दोलित रही है। इस रियासत में ज्यादातर जन-आंदोलन अंग्रेजों तथा ठाकुरों की अन्यायपूर्ण व अत्याचारपूर्ण नीति, बैठ-बेगार, बुरे रीति-रिवाज आदि अनेक मुद्दों को लेकर होते रहे। रियासत में विद्रोह की चिंगारी तो 1857 ई. के विद्रोह के समय से ही शुरू हो गई थी परन्तु इसका प्रत्यक्ष रूप 1911 ई. के बाद निरन्तर देखने को मिला। इसके बाद 1918 ई. से लेकर 1947 ई. तक ठियोग रियासत की जनता ने तानाशाही शासन के खिलाफ अनेकों आन्दोलन किये। 1921 ई. और 1938 ई. को कांग्रेस ने अपने वार्षिक अधिवेशन में देशी रियासतों में विधिवत् प्रजामण्डलों की स्थापना करने तथा राष्ट्रीय आन्दोलन चलाने सम्बन्धी प्रस्ताव पारित किये ।
इसके बाद यही प्रस्ताव 'अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्' में पास हुए। 1939 ई. में लुधियाना में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए 'अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद्' के सम्मेलन में रियासतों में प्रजामण्डल की स्थापना को विशेष बल मिला। इस सम्मेलन के बाद शिमला की पहाड़ी रियासतों में धड़ा-धड़ प्रजामण्डल बनने शुरू हुए। ठियोग रियासत में भी इसी काल में प्रजामण्डल बनने लगे लेकिन रियासत में आन्दोलन की विधिवत् शुरूआत सन् 1946 ई. में हुई। ठियोग की जागरूक जनता, प्रभावशाली नेतृत्व तथा प्रजामण्डल के सहयोग से इस रियासत को 15 अगस्त, 1947 ई. को ब्रिटिश शासन तथा 16 अगस्त, 1947 ई. को सामन्तशाही से मुक्ति मिली थी। प्रस्तुत लघु पुस्तक को प्रकाशित करते हुए मुझे जिस हर्ष और उल्लास की अनुभूति हो रही है, उसका वर्णन करना मेरे लिए सम्भव नहीं है।