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समय है चुनौती का
महशहूर फिल्मकार के. आसिफ अपनी फिल्म ‘मुगले आजम’ में नायक सलीम से कहलवाते हैं, ‘मेरा दिल, आपका हिंदुस्तान नहीं, जिस पर आप हुकूमत कर सकें।’ यह संवाद सीधे तौर पर मुगल सल्तनत के बादशाह अकबर को चुनौती थी। हिंदुस्तान के बादशाह के इकबाल पर सवालिया निशान भी। कोई भी राजा है और उसका इकबाल बुलंद नहीं, तो उसके कद को आखिर कौन मानेगा अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भी यदि संघीय सरकार का इकबाल बुलंद नहीं हो, तो एक नहीं, कई समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी होगी। हाल ही सहिष्णुता और असहिष्णुता का मसला उठा। अभी ‘भारत माता की जय’ बोलने पर राजनीति की जा रही है।
भारत माता की वंदना करने वाली यह उक्ति हर उद्घोष के साथ स्वाधीनता संग्राम के सिपाहियों में नए उत्साह का संचार करती थी। जिस धरती पर हम रहते हैं, उसकी पूजा करना, जय-जयकार करना क्या गलत है इन शब्दों और भारत को अपनी मां के रूप में स्वीकार न करने से तो नि:स्संदेह यही प्रतीत होता है कि हम भारत में रहकर राष्ट्रवाद को पीछे छोड़ रहे हैं। हम उन महान योद्धाओं का उपहास उड़ा रहे हैं, जिन्होंने भारत को अपनी माता समझकर देश के दुश्मनों का जुल्म सहा है। जिन्होंने लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहुति दी। हम उपहास उड़ा रहे हैं और मनोबल गिरा रहे हैं, सरहद पर दिन-रात देश की रक्षा करने वाले उन जिंदा-दिल जवानों का, जो भारतमाता की जय-जयकार कर सीने पर गोलियां खाने को तैयार रहते हैं।
असल में, देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की अवमानना और समानांतर व्यवस्था कायम करने की मंशा लिए नक्सली आंदोलन चलाया गया। बीते कुछ दशकों में यह आंदोलन किसी भी भलाई के लिए नहीं, बल्कि हिंसक होता गया। करोड़ों-अरबों का नुकसान हुआ। हजारों जानें गर्इं। आम नागरिक की और सुरक्षाकर्मियों की। मुठभेड़ में नक्सली भी मारे गए। सैकड़ों जिले नक्सलियों की जद में आए। विकास कार्य अवरूद्ध हुआ। आखिर कैसे क्या है नक्सलियों की मंशा कौन-कौन से हैं उनके प्रभाव क्षेत्र तमाम पहलुओं की पड़ताल करते हुए ‘शुक्लपक्ष’ ने अपने-अपने क्षेत्र के वरिष्ठ पत्रकारों से आवरण कथा लिखवाई। साथ ही जमशेदपुर की पूर्व सांसद सुमन महतो ने नक्सलियों के दंश को जिस प्रकार से झेला है, उसकी आपबीती। झारखंड आंदोलन के पर्याय बन चुके सांसद शिबू सोरेन का साक्षात्कार हमने इसी संदर्भ में लिया है।
वैसे, उम्मीद जगाने वाली बात यह है कि हाल ही में संसद में केंद्र सरकार ने बताया है कि 2011 की तुलना में अभी नक्सल गतिविधियों में 22 प्रतिशत की कमी आई है। सरकार इसे खत्म करने को प्रतिबद्ध है। गृह राज्य मंत्री हरीभाई पर्थीभाई चौधरी कहते हैं कि कानून एवं व्यवस्था तथा पुलिस राज्य का विषय है, लेकिन जहां तक नक्सल गतिविधियों का सवाल है, केंद्र इससे निपटने में राज्यों की मदद करता है। देश के 10 राज्यों के 106 जिले नक्सल से प्रभावित हैं। विभिन्न राज्यों में नक्सलियों से निपटने में पुलिस की मदद के लिए 106 बटालियन केंद्रीय बल भेजे गए हैं।
हाल के दिनों में एक नहीं, कई राजनीतिक घटनाएं हुई। यह भावी भविष्य की ओर इशारा करती हैं। बिहार जाकर दो धुर-विरोधी उड़नखटोले में गूटर-गूं करते हैं, जो राजनीतिक पंडित अवाक रह जाते हैं। हाजीपुर में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार एक-दूसरे को हाथ धरे ठहाके लगाते हैं। उत्तराखंड में हरीश रावत को अस्थिर करने के लिए उनके ‘अपने’ भी केसरिया रंग में रंगने को आतुर दिखते हैं। कश्मीर की वादियों से महबूबा मुफ्ती दिल्ली आकर 7-रेसकोर्स में नरेंद्र मोदी से मिलती है। राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करती है। हमारी तरफ से उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं। पानी के लिए पंजाब और हरियाणा की सरकारें सुप्रीम कोर्ट का हवाला देकर सतलुज-यमुना लिंक नहर पर आमने-सामने होती है। असम विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने से पूर्व राज्यसभा की दोनों सीटें कांग्रेस झिटक लेती है।
ये केवल घटनाएं भर नहीं हैं। वासंती मौसम में चैत की तीक्ष्ण होती धूप की तरह राजनीतिक मनसबदारों के लिए चुनौती है। साथ ही चुनौती है उस संघीय व्यवस्था के लिए, जिसका राजदंड नरेंद्र मोदी के हाथ में है। यह चुनौती है उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए, जो नागौर बैठक के जरिये उत्तर प्रदेश में सत्तारोहण का मार्ग प्रशस्त करना चाहता है। जब विचारक गोविंदाचार्य कहें कि लोकतंत्र तो एक भाव है। कुकर की सीटी सुनकर भी अनसुना करते जाएं, तो हम डेंजर जोन में पहुंच जाते हैं। जब भेड़ के लिए अलग न्याय और सांड़ के लिए अलग न्याय होने लगे, तो न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठेंगे। विधायिका पर प्रश्नचिन्ह लगेगा देश मिटेगा, तो बचेगा कौन इसके लिए, सत्ता का इकबाल जरूरी है। आज संकल्प की आवश्यकता है। सही बात को डटकर बोलें, जो जहां हैं, वहीं से बोलें।