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हिन्दी की व्यथा को कौन आवाज दे आज भी वह अपने वाजिब सम्मान से वंचित है और अंग्रेजी भारतीय जनमानस पर अपने साम्राज्य का विस्तार करती जा रही है। लगता है, जैसे अपनी मातृभाषा हिन्दी बिचारी उपेक्षा भाव से बैठी सिसकियां ले रही हो। उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए आज कोई डंके की चोट पर यह कहने वाला नहीं कि देश-विदेश के 50 करोड़ से ज्यादा लोग हिन्दी बोलते हैं। समझने वालों की तादात तो एक करोड़ से ऊपर है। चीनी के बाद हिन्दी ही दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। चीनी को तो उसके वतन में ऑफिशियल लैंग्वेज का दर्जा प्राप्त है लेकिन अपनी हिन्दी को देवनागरी लिपि में संघ की राजभाषा के दर्जा से ही संतोष करना पड़ा। संविधान बनाने वालों ने सोचा था कि कुछ समय बाद हिन्दी को उसका सम्मान मिल जाएगा लेकिन वह आज भी इसके लिए बाट जोह रही है...