ईमानदारी और गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाए तो वैश्विक स्तर पर खेलों के मैदान में हमारा प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा है। देखा जाए तो खेलों के हर क्षेत्र में स्तर पर खेल संस्कृति का अभाव ही हमारे पिछड़े होने का मुख्य कारण रहा है। सवाल यह उठता है कि सामाजिक रूप से संगठित और संचार तकनीक से सुसज्जित हमारे देश के नौजवान एक उच्च स्तरीय खेल संस्कृति को आत्मसात करने आगे क्यों नहीं आ पा रहे हैं यदि हम यह कहें कि हमारे देश के अधिकांश प्रदेशों में व्याप्त निर्धनता इसका मुख्य कारण है, तो शासकीय स्तर पर नीति नियंताओं ने खेल संस्कृति के विकास के लिए कितने ईमानदार प्रयास किए हैं यह भी देखने वाली बात है। खेलों की संस्कृति को सभ्यता, विकास की कड़ी के रूप में देखा जाता रहा है। फिर सार्वजनिक व कार्पोरेट सेक्टर ने इसे कितना और कैसा समझा यह भी एक बड़ा सवाल है।