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अयोध्या में राम मंदिर का विषय भारतीय जनमानस के लिये आस्था और भावना का मुद्दा है। किंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि राम मंदिर मुद्दे का राजनीतिकरण भी बड़े स्तर पर हुआ है। मंदिर निर्माण भारतीय जनता पाटी के एजेंडे का हिस्सा है, लेकिन वह सत्ता में आने के बाद उस पर ज्यादा जोर नहीं दे पाती। वह ऐसा न अटल सरकार के समय कर सकी और न ही मोदी सरकार के रहते कर पा रही है। भाजपा ने 2014 के घोषणापत्र में भी मंदिर मुद्दे को शामिल किया था। आज मोदी सरकार के समक्ष कानून लाने का अवसर भले ही हो, लेकिन व्यावहारिक रूप से शायद ही यह संभव हो कि वह इस रास्ते पर चलकर अयोध्या विवाद को हल कर सके। विरोधी दल तो उस पर हल्ला बोल ही देंगे, क्योंकि मुस्लिम तुष्टीकरण उनकी राजनीति का अभिन्न अंग है। इसी कारण वे राम मंदिर के सवाल को गंभीरता से समझने से इन्कार करते हैैं। वे यह समझने को भी तैयार नहीं कि भगवान राम भारत की सभ्यता और अस्मिता के प्रतीक हैैं और यदि उनके नाम का मंदिर उनके जन्म स्थान पर नहीं बन सकता तो और कहां बन सकता है राम के बगैर भारतीय मानस की कल्पना कल्पना करना कठिन है।