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इस बार रूबरू दुनिया की कवर स्टोरी नारियों और महिला दिवस से सम्बंधित है पर फिर भी अलग है। इस बार हम प्रकाश डाल रहे हैं एक अनछुए पर ज़रूरी पहलु पर नारी का आत्ममंथन। हम अक्सर अपने लेखों में महिलाओं के सामने पड़ी विषमताओं, सामाजिक बंधनों की बात करते ही हैं पर नारी की कमियों पर कभी आत्ममंथन की बात नहीं होती। क्या महिलायें इंसान हैं हाँ! क्या बेवकूफी भरा प्रश्न है ना, इंसान हैं और इंसानो में कमियाँ होती हैं। अपनी खामियों को पहचानकर, उनकी स्थिति जान कर ही उनका उन्मूलन किया जा सकता है। अड़चन यह है कि एक तो बुराई, निंदा के मामले में पुरुषों पर लाइमलाईट रहती है, दूसरा आत्ममंथन की बात को वर्ग कमज़ोरी से जोड़ कर देखा जबकि स्वयं का ईमानदारी से आंकलन तो अपनी एवं अपने वर्ग की मज़बूती की ओर पहला कदम होते हैं। तो इस शुरुआती व सबसे अहम् संवाद से जी क्यों चुराना इसी सोच के साथ निष्पक्षता के साथ इस आंकलन को आगे बढ़ाते हैं। संभव है आप इस आंकलन में स्वयं को खरा-सौ प्रतिशत पाती हैं पर यहाँ पूरी नारी जाती को लिया जा रहा है। अगर निम्नलिखित बातों में से एक या ज़्यादा आप अपनी जानकारी में किसी स्त्री में पाती या पाते हैं तो उनके भले और प्रगति के लिए उन्हें अवगत कर जागरूक बनाने में देरी ना करें।