Nai Kalam Ubharte Hastakshar


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बात अपनी कहने की आई है , तो यक़ीनन अब ऐसा लगता है जो अन्दर का लेखक है वो कहीं मर रहा है , शायद इसलिए कि अब मैं बिजनेस माइंड होने लगा हूँ. वक़्त के साथ चीजें बदलती हैं , शायद मैं भी बदल रहा हूँ. लेकिन ऐसा कहाँ ! जिसने एक बार क़लम पकड़ी वो क़लम थमती जरूर है लेकिन रूकती नहीं है.............