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pकाव्य गोष्ठियों में हम दोस्तों के संग कई तरह की कवितायें लिखते, सुनते और सुनाते जैसे कि वरिष्ठ कवियों की कविताएँ, खुद की कविताएँ, हास्यपूर्ण उटपटांग कविताएँ, मिलजुल कविताएँ इत्यादि । मिलजुल कविता के लिए कुछ साथी एक पन्ने पर एक-एक अक्षर लिखते और मैं उन्हें कविता में पिरो देती। कई बार तो यूँ लगता कि हर सोच में तरन्नुम है। कुदरत के सब नज़ारों में तरन्नुम है। साँसें भी तरन्नुम से बहती है, खुशियों में, यादों में तरन्नुम है और यूँ लगता के जिंदगी हर हाल में बहुत हसीन है शायद यह ही मेरी प्रेरणा का मूल कारण है।p