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pजीवन के आरम्भ से अंत तक के संस्कार गीत MAITHILI बज्जिका मैं इस धन्यवाद को लिखते हुए बेहद जिम्मेदार और आभारी महसूस कर रही हूं। जिम्मेदार इसलिए कि मेरी माँ श्रीमती गीता सिंह, जिनके चरण-रज के बराबर भी नहीं मैं, उनके लिए एक छोटा प्रयास मैंने किया। बेशक इसमें थोड़ा वक्त ज्यादा लग गया क्योंकि जब सारे संसाधन आपको अपने मानक स्तर पर सीमित व्यय में करना हो तो विलंब हो ही जाता है। मगर कहते हैं न कि प्रयास की शुरुआत तभी हो सकती है जब आपने अकेले ही शुरू किया हो। मगर ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते हैं कुछ लोग आपके सहयोग के लिए बढ़ ही आते हैं। बिल्कुल ऐसा ही हुआ इस पुस्तक की गीतों को लीपिबद्ध करने व छापने योग्य विद्या में इसे समेटने में। इस क्रम में चूँकि यह बज्जिका भाषा में है और इसकी प्रूफ रीडिंग के लिए बज्जिका और कंप्यूटर जानने वाले व्यक्ति की आवश्यकता होती, तो ऐसे व्यक्ति स्वतः ही मेरे समक्ष आ गए। सबसे पहले धन्यवाद मुन्ना कुमार जी का, जिन्होंने इसका डिजिटल फॉर्मेट शुद्धता के साथ तैयार किया। इनकी मैं सदा आभारी रहूंगी। मेरी माँ गीतों को लिखती और संजोती हैं, यह जानकारी हमारे पारिवारिक मित्र और माँ के लाडले श्री पंकज शर्मा सर को जब मालूम हुआ तो उन्होंने इन संरक्षित गीतों को पुस्तक का रूप देने के लिए कहा। अनुराधा पब्लिकेशन का चुनाव भी उन्होंने ही किया। हर वक्त मनोबल बढ़ाये रखने के लिए अगर एक सच्चा दोस्त आपके साथ हो तो एवरेस्ट भी मुश्किल नहीं इस तथ्य को पंकज सर हमेशा साबित करते रहे।p