Readwhere

Nachiketa ka teesra var


Read Now Buy Now @ ₹ 138.00 Preview
pप्रिय पाठकों ! सत्गुरू की असीम दया और परब्रह्म परमेश्वर की अहैतुक कृपा से यह खण्ड-काव्य आपकी सेवा में प्रस्तुत की जा रही है। त्रुटियों पर्याप्त की ओर ध्यान न देकर भाव को समझ लेना ही पर्याप्त होगा। मेरी लिखने की सामर्थ्य कहां थी जो कुछ लिखा गया है वह एक जादू जैसी बात है। एक ऐसी बात जिस पर कोई विश्वास न कर सके । brप्रस्तुत पुस्तक लिखने का शुभारम्भ सन् 2001 के अप्रैल माह में हुआ था। मैं कठोपनिषद् पढ़ रहा था। अकस्मात् मन में सोच आई कि क्यों न नचिकेता तथा धर्मराज के बीच घटित ब्रह्मज्ञान की धारा को छन्दबद्ध किया जाय महज 21 वर्ष की उम्र में मैंने अपने आराध्य भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से कलम पकड़ लिया और लिखना आरम्भ कर दिया। कुछ प्रारंभिक कठिनाइयों के हिलकोरे के साथ लगभग 5 वर्षों में लेखन का कार्य पूर्ण हो सका । brप्रस्तुत पुस्तक नचिकेता का तीसरा वर वास्तविक रूप से कहें तो यह वेद के चार सिद्धान्त का निदर्शन कराता है। वेद के अन्त भाग कठोपनिषद् में महर्षि वाजस्रवा के पुत्र नचिकेता और यमराज के बीच के आकर्षक एवं ज्ञानपूर्ण संवादों का विवरण है, जिसमें अनेक ऐसी गहरी बातें आयी हैं जो परमात्म तत्त्व का सहज अनुभव कराने में बहुत सहायक हैं। अपने पिता के श्राप से ग्रसित होकर नचिकेता यमलोक द्वार पर पहुंचा और समस्त संयमनीपुरी हिला दी। श्राप का कारण यह था कि महर्षि वाजस्रवा अस्वस्थ गौओं का दान कर रहे थे और नचिकेता उनका विरोध कर रहे थे। सभी जानते हैं कि गौएं संसार में सर्वश्रेष्ठ है; क्योंकि वे सारे जगत् को जीवन प्रदान करती हैं। p